रिपब्लिक न्यूज।।
शहडोल मुख्यालय ऐसा नहीं है की शहडोल आदिवासी क्षेत्र के शहडोल संभाग मुख्यालय के नगर में ऐसे रिकॉर्ड गड्ढे भरने के तोड़े नहीं जा सकते, शहडोल गड्ढों का शहर है का शहर है। जय स्तंभ चौक से जब कमिश्नर शहडोल अपने बंगले तक जाती हैं तो ड्राइवर अगर होशियार नहीं है तो वह उन्हें जंप करता हुआ घर से लेगा और और घर पहुंचाएगा ....।
एक है अपर कलेक्टर विकास जिन्हें सीईओ जिला पंचायत कहते हैं। इन पर जिले का विकास का सपना देखने की जिम्मेदारी है और क्रियान्वयन करने का भी। उनके बंगले के सामने जितने गड्ढे हैं उतने तो पूरे जिले में औसतन देखने को नहीं मिलेंगे। यही ठीक बगल में शहडोल जिला जज का भी बंग्ला है। इतने अवसर हैं इतनी चुनौतियां हैं शहडोल नगर पालिका के लिए कि वह एक रिकॉर्ड कायम कर सकती है।
और अखबारों में पॉजिटिव तरीके से हैडलाइन में अपना जगह बना सकती है दिल्ली के अखबारों में जब यह जगह बनते हैं तो लगता है शहडोल में भी ऐसे रिकॉर्ड क्यों नहीं टूटते..? इसी तरह बरसात आने की चुनौती है नालियां पैक हैं उसे बरसात पर ठीक कर लेना चाहिए ताकि आम जनता को सड़क में पानी से होने वाली तकलीफ को बचाया जा सके।
लेकिन भ्रष्टाचार जब लक्ष्य हो जाता है तब बुढार रोड से गांधी चौक तक आने वाली सड़क की नालियां लाखों रुपए खर्च करने के बाद ढांक दी जाती हैं। बनी बनाई नालियों को पैक कर दिया जाता है बुढार रोड से आगे बढ़ती ही नालियां बनाने के लिए पूरे वृक्ष कटा दिए गए शहडोल कलेक्टर के निर्देश पर, वर्षों बाद आज तक नालियों ने अपना स्वरूप नहीं लिया। नालियां गुरु नानक चौक तक आते ही दम तोड़ दी, आगे बढ़ने का नाम ही नहीं। कुछ नालियां फॉरेस्ट ऑफिस के आने तक खत्म हो गई। गांधी चौराहा तक इन नदियों को पहुंचाने की जहमत नगर पालिका ने नहीं उठाई। अब माना जाता है कि वह नालियां बेकार हो गई है। इसलिए नए सिरे से नलिया बनाई जाएगी। पिछले 20 वर्ष में भाजपा का यही क्रम रहा है। सड़क तब भी पानी में बहता था अब भी सड़क में पानी बहेगा।
जब आप नालियों की व्यवस्था नहीं कर पा रहे हैं जब मुख्य मार्ग के गड्ढे ठीक नहीं हो पा रहे हैं तब हो क्या रहा है... हमने तलाश किया ,नगर पालिका के इंजीनियर राजेंद्र टॉकीज के पीछे राजेंद्र नगर कॉलोनी के 30 फीट की सड़क करोड़ों रुपए से बनने वाली कमर्शियल बिल्डिंग के लिए मिनांशु मस्ता नामक आदमी को बकायदे निर्माण के लिए अनुमति दे देते हैं। ताकि वह जो इस अधिगम में पैसा पाए इसका समुचित तरीके से बंदर बांट कर सके। आखिर सड़क बेचने का काम गुपचुप तरीके से हो गया। क्योंकि नगर पालिका का लोकप्रिय ठेकेदार जिसने नगर पालिका को हाईजैक कर रखा है उसने उस निर्माण का ठेका ले लिया है। तो जहां-जहां भी सड़के हैं वहां अतिक्रमण कराना है तो लाखों करोड़ों रुपए नेताओं और अफसर को बंदर बांट करके नगर पालिका के इंजीनियर की मदद से निर्माण की अनुमति दे दी जाती है। इस घटना से यह तय हुआ। जब पूरा का पूरा ध्यान भ्रष्टाचार के बंदर बांट में है सड़कों को बेचने में लगा हुआ है नगर पालिका की पूंजीगत संपत्ति को खुर्द बुर्द करने में नेता और ठेकेदार इंजीनियर अफसर के साथ करने में लगे हैं। और रातों-रात करोड़पति बनने का ख्वाब देखते हैं ऐसे में शहडोल के नालियों का विकास गड्ढों को ठीक करना एक घटिया काम करने नही लगता है।
कॉलोनी का भ्रष्टाचार, निर्माण कार्य में भ्रष्टाचार ,अगर यही प्राथमिकता है तो स्वाभाविक है की जेल बिल्डिंग के बगल वाले तालाब में प्रधानमंत्री आवास बनाकर उसे बेचने और खरीदने का कारोबार नगर पालिका में बैठा हुआ अमला करवाता रहता है।
अब खबर तो यह भी है की मेला ग्राउंड का स्टेज जो कभी 1000 साल पहले बने विराट मंदिर के मेला परिषद के नाम से विकसित की गई थी किसी प्राइवेट आदमी के नाम से चढ़ गई। वह भी नगर पालिका प्रशासन में काम करता है उसे कब्जा देने में ज्यादा रुचि दिखाई गई। खबर तो यह भी है की सब्जी मंडी की दुकान के परिसर भी नेता और अधिकारी मिलकर लाखों रुपए में बेचने के फिराक में थे लेकिन बंदर बांट सही नहीं होने पाया तो मामला ठंडा हो गया.... ऐसे में तालाबों का रखरखाव पानी का प्रबंध नालियों का प्रबंध नगर पालिका में बैठे हुए इंजीनियर और उसके अफसर के लिए घटिया काम लगने ही लगता है यह मानवी स्वभाव है जब आप बड़े भ्रष्टाचारियों के साथ मिलकर करोड़ों रुपए कमाने के लिए दिन रात अपना माइंड सेट करते हैं तो लोग मानस के काम बरसात की होने वाली समस्या छोटी मोटी लगने लगती है और इतनी छोटी लगती हैं की अपर कलेक्टर विकास या जिला सत्र न्यायाधीश का बंगला अथवा कमिश्नर का बंगला कि सामने की सड़क को ठीक रखना भी उनकी प्राथमिकता नहीं रह जाती। यही भ्रष्टाचार की ताकत है। भलाई भ्रष्टाचार की कीड़ों-मकोड़ो को यह लगता का हो कि यह उनकी ताकत है।
उससे ज्यादा बुरा यह है कि चाहे जिला जज हो या अपर कलेक्टर विकास हो या कमिश्नर शहडोल हो आखिर इनका क्या हस्तक्षेप होगा यदि सामने की सड़क ठीक नहीं होती...? क्या यह सिर्फ अफसर है मनुष्य नहीं ...? अथवा वह नागरिक होने की संवेदना से मुक्त हैं...? क्या यह स्वतंत्र संज्ञान लेकर शहडोल नगर की व्यवस्था को ठीक रखने में मॉडल रोड बनाने में स्वयं के पद का उपयोग नहीं कर सकते...? क्या लोकतंत्र इतना गैर जिम्मेदार प्रोडक्ट दे रहा है...? क्योंकि यह समस्या परंपरागत वर्षों की हो चली है।
एक ऐसा ही मामला जिला मुख्यालय से लगभग दस किलो मीटर दूर प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में बनाई गई है। सिंह पुर से ग्राम पंचायत बोडरी पहुंच मार्ग के खाईं नुमा गड्ढे और जर्जर पुलिया मौत को दावत देते हैं।
जबकि हजारों रहवासी इस रस्ते का उपयोग कर अपना जीवन यापन घर परिवार पलते हैं और ऐसा ही हजारों बच्चे अपने भविष्य के लिए इस रास्ते से गुजरते हैं।
यह सब प्रश्न है इसलिए शहडोल में एक दिन में गड्ढे भरने का रिकॉर्ड नहीं टूटा... भलाई वह भाजपा की दिल्ली की सरकार में रिकॉर्ड टूट रहा हो...। सोचिए और सोचते रहिए... किस जंगल राज में हम निवास कर रहे हैं... इसी को राम राज्य कहते हैं। यह अलग बात है की शहडोल नगर पालिका के अध्यक्ष कांग्रेस पार्टी से आते हैं, तो क्या भाजपा और कांग्रेस का सत्ता का एक ही चरित्र है....? बड़ा प्रश्न है..।