रिपब्लिक न्यूज।।
भोपाल मध्य-प्रदेश प्रदूषण से भारत में लाखों मौतों का खुलासा चिंताजनक।
देश के सभी क्षेत्रों में संचालित और बढ़ते कारोबार के चलते कारखानों से निकलने कई प्रकार के दूषित स्त्रौतों में प्रदूषण नियंत्रण नहीं हो रहा है। जिससे कई प्रकार से प्रदूषण फैल रहा है।
जबकि भारत मे सबसे ज्यादा जलवायु परिवर्तन के चलते लगातार बढ़ रहे प्रदूषण को लेकर पूरी दुनिया में जबरदस्त चिंता के बीच, भारत के संदर्भ में आई एक ताजा शोध रिपोर्ट बेहद हैरान-परेशान करने वाली है।
दिल्ली, मुंबई, पुणे, अहमदाबाद, बेंगलुरु, चेन्नई, हैदराबाद, कोलकाता, शिमला और वाराणसी थे। इनमें प्रदूषण से हुई मृत्यु के आंकड़ों और उनके कारणों का सूक्षम विवेचन किया गया।
लैंसेट काऊंटडाऊन ऑन हैल्थ एंड क्लाइमेट चेंज नाम से रिपोर्ट 71 शैक्षणिक संस्थानों जिनमें यूनिवॢसटी कॉलेज लंदन और विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यू.एच.ओ. शामिल हैं, के 128 विशेषज्ञों की अंतर्राष्ट्रीय टीम ने तैयार की है।
पूरी दुनिया में प्रदूषण से होने वाली मौतों में 70 प्रतिशत केवल भारत में हुईं। महज 2022 के आंकड़ों के अनुसार समूची दुनिया में वायु प्रदूषण से करीब 25 लाख लोगों की मौतों में से अकेले भारत में 17 लाख 72 हजार लोगों ने अपनी जान गंवाई। इसके लिए पी.एम. 2.5 को जिम्मेदार बताया गया।.................. कितना अच्छा होता कि इसको लेकर दुनिया भर में जानकर भी अनजान बनी सरकारें और नुमाइंदे शांति और युद्ध के खतरों को टालने के ड्रामे की बजाय स्वस्थ प्रकृति और खुशहाल मानवता खातिर ईमानदार प्रयास करते।
इसी पर मेरा लेख है। विश्वास है कि हमेशा की तरह आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी।
निश्चित रूप से जलवायु परिवर्तन के चलते लगातार बढ़ रहे प्रदूषण को लेकर पूरी दुनिया में जबरदस्त चिंता के बीच, भारत के संदर्भ में आई एक ताजा शोध रिपोर्ट बेहद हैरान-परेशान करने वाली है। 1823 में स्थापित दुनिया की प्रमुख चिकित्सा पत्रिका ‘द लैंसेट’ की 2022 के संदर्भ की रिपोर्ट बेहद डराने वाली है। इस चर्चा और सुर्खियों में आई रिपोर्ट में विस्तार से किए गए अध्ययन और तथ्यों का जो खुलासा है, उसे गंभीरता से लेना होगा।
शोधकर्ताओं ने इसमें 5 अलग-अलग जलवायु क्षेत्र को बांटकर वहां के बड़े शहरों को शामिल किया है।इसमें बताया गया है कि पूरी दुनिया में प्रदूषण से होने वाली मौतों में 70 प्रतिशत केवल भारत में हुईं। महज 2022 के आंकड़ों के अनुसार समूची दुनिया में वायु प्रदूषण से करीब 25 लाख लोगों की मौतों में से अकेले भारत में 17 लाख 72 हजार लोगों ने अपनी जान गंवाई। इसके लिए पी.एम. 2.5 को जिम्मेदार बताया गया। पी.एम. 2.5 यानी पार्टिकुलेट मैटर 2.5 हवा में मौजूद बेहद छोटे कणों को कहते हैं, जिनका व्यास 2.5 माइक्रोन या उससे कम होता है। ये कण मानव बाल की मोटाई से लगभग 30 गुना छोटे होते हैं जो नंगी आंखों से नहीं दिखते हैं। अपने छोटे आकार के कारण ये सांसों से फेफ ड़ों और रक्तप्रवाह तक गहरे चले जाते हैं जिसका पता भी नहीं चलता। यहीं से स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याएं शुरू हो जाती हैं जो घातक होती हैं। पी.एम. 2.5 के कण कोयला जलाने वाले संयंत्रों, वाहनों, औद्योगिक स्रोतों और जीवाश्म ईंधन से उत्सर्जित होते हैं।
पी.एम. 2.5 का मामूली संपर्क यानी 24 घंटे से भी कम में हृदय या फेफ ड़ों की बीमारियों को घातक करने के लिए काफी है। लगातार संपर्क में रहने से ये ब्रोंकाइटिस, अस्थमा के दौरों के चलते प्रभावितों को अक्सर आई.सी.यू. तक पहुंचा देते हैं।
विडंबना ही है कि भारत सहित कई निम्न और मध्यम आय वाले देशों में वायु प्रदूषण बहुत ज्यादा है। यह लगभग पूरे साल सिवाय बारिश छोड़कर बना रहता है। 2010 के मुकाबले 2022 में यह आंकड़ा 38 प्रतिशत बढऩा बेहद चिंताजनक है। न केवल दिल्ली बल्कि देश के दूसरे तमाम शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक खराब बल्कि बेहद खराब स्थिति में रहना चिंतनीय है। 2016 से 2022 के बीच जीवाश्म ईंधन से होने वाले उत्सर्जन में 21 फीसदी की वृद्धि हुई जो परिवहन सैक्टर को लगने वाली ऊर्जा का 96 प्रतिशत पूर्ति करता है। इसके अलावा दुनिया भर में हाल के वर्षों में जंगलों में एकाएक भड़क रही आग भी काफी नुकसान पहुंचा रही है। अकेले 2024 में ही जंगल की आग से 1.54 लाख लोगों ने दुनिया भर में जान गंवाई।
ऐसा नहीं है कि वायु प्रदूषण सीधे-सीधे स्वास्थ्य पर ही भारी हो। इससे हीटवेव, बाढ़, भूस्खलन और अन्य प्राकृतिक घटनाएं भी आपदा बनकर टूट रही हैं। डेंगू, मलेरिया व कई दूसरी बीमारियों का कहर भी बहुत बढ़ रहा है। चिंताजनक यह भी कि 2015 के पैरिस समझौते और विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी वैश्विक प्रतिबद्धताओं से मौजूदा समय में न केवल अमरीका बल्कि कुछ औरों ने भी पीछे हटना शुरू कर दिया है। इसी के चलते संयुक्त राष्ट्र महासभा में स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन पर बहस 2021 के 62 प्रतिशत के मुकाबले 2024 में महज 30 प्रतिशत रहना, यही बताता है।
हालांकि जलवायु परिवर्तन और इससे हो रही आपदाओं से बचने खातिर समाधान तो हैं लेकिन जरूरत ईमानदार प्रयासों की है जो किसी एक देश के बलबूते संभव नहीं। अब तो पूरी दुनिया का रुझान स्वच्छ और हरित ऊर्जा पर है। लेकिन यह भी सच है कि इसमें बिना स्थानीय पहल के सफलता दूर की कौड़ी है। हालांकि भारत ने इस दिशा में काफी कुछ हासिल कर लिया है लेकिन जरूरत वैश्विक बदलाव की है। कितना अच्छा होता कि इसको लेकर दुनिया भर में जानकर भी अनजान बनी सरकारें और नुमाइंदे शांति और युद्ध के खतरों को टालने के ड्रामे की बजाय स्वस्थ प्रकृति और खुशहाल मानवता खातिर ईमानदार प्रयास करते।