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शहडोल मुख्यालय मोहन राम मंदिर: भ्रष्टाचार, लापरवाही और दीवाल का ढहना शहडोल का मोहन राम मंदिर, जो कभी आस्था और संस्कृति का प्रतीक था, आज भ्रष्टाचार, कुप्रबंधन और लापरवाही की कहानी बयां करता है।
14 मई 2017 को मंदिर परिसर में हुए निर्माण कार्यों का लोकार्पण बड़े धूमधाम से किया गया था, लेकिन उसमें हुए ढाई करोड़ रुपये के कथित भ्रष्टाचार के आरोपों ने इस पवित्र स्थल की गरिमा को धूमिल कर दिया। आठ साल बाद, 5 जुलाई 2025 को मंदिर परिसर की दक्षिणी दीवार टूटकर नाले में समा गई, जिसने न केवल भ्रष्टाचार की पोल खोल दी, बल्कि स्थानीय प्रशासन और मंदिर ट्रस्ट की नाकामी को भी उजागर कर दिया।दीवाल का ढहना: लापरवाही का प्रतीक मंदिर परिसर की दक्षिणी दीवार के ढहने की घटना कोई साधारण हादसा नहीं है। यह उस भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन का परिणाम है, जो वर्षों से मंदिर की संपत्ति को खोखला करता रहा। यह दीवार न केवल भौतिक रूप से गिरी, बल्कि यह उन तमाम वादों और विश्वास का प्रतीक है, जो मंदिर के रखरखाव और संरक्षण के नाम पर किए गए थे। अगर बारिश का दौर जारी रहा, तो बुढार चौराहे से मुड़ने वाला पानी नदी तक पहुंचने के बजाय बाजार में बाढ़ का रूप ले सकता है। यह स्थिति न केवल स्थानीय लोगों के लिए खतरा है, बल्कि मंदिर की साख पर भी सवाल उठाती है।
भ्रष्टाचार के पुराने घाव2017 में मंदिर परिसर के निर्माण में ढाई करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार के आरोप शहडोल कमिश्नर की जांच में प्रमाणित हुए थे, लेकिन यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया। मंदिर परिसर में बने तालाब के फव्वारे, जो एक साल भी नहीं चल सके, और अब उनका कोई अस्तित्व नहीं है, भ्रष्टाचार की जीती-जागती मिसाल हैं। तालाब के आसपास बनी कुर्सियां, छतरियां और चिप पत्थर भी लूट का शिकार हो रहे हैं। यह सब उस ट्रस्ट की नाकामी को दर्शाता है, जो मंदिर की संपत्ति की रक्षा के लिए गठित किया गया था।हाई कोर्ट के आदेश की अवमानना2012 से मंदिर ट्रस्ट पर हाई कोर्ट के आदेश का पालन नहीं हो रहा है। कथित मैनेजर या पंडित ने 13 साल बाद भी हाई कोर्ट के निर्देशों की अनदेखी की और कब्जे व गुंडागर्दी के बल पर मंदिर की संपत्ति पर नियंत्रण बनाए रखा। ट्रस्ट की संपत्ति के लिए गठित स्वतंत्र कमेटी को अभी तक प्रभार नहीं मिला है, जिसके कारण वह कोई ठोस कदम नहीं उठा पा रही। यह स्थिति सवाल उठाती है कि आखिर मंदिर की संपत्ति की सुरक्षा और रखरखाव की जिम्मेदारी किसकी है।
भाजपा और राम राज्य का दावा मोहन राम मंदिर के हालात और हाल की रथ यात्रा कमेटी में भाजपा का दबदबा यह सवाल खड़ा करता है कि क्या मंदिर के साथ हो रहे इस लूट और भ्रष्टाचार के लिए भारतीय जनता पार्टी जिम्मेदार है? शहडोल में "राम राज्य" का दावा करने वाली भाजपा के शासन में मंदिर की यह दुर्दशा विडंबना ही कही जाएगी। मंदिर परिसर की संपत्ति की लूट, दीवार का ढहना और तालाब का बुरा हाल इस बात का सबूत है कि आस्था के नाम पर केवल राजनीति हो रही है, न कि वास्तविक विकास। आगे क्या?जब तक ढही हुई दीवार का मलबा नहीं हटाया जाता और इसके लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई नहीं होती, तब तक यह सवाल अनुत्तरित रहेगा कि मंदिर की इस दुर्दशा के लिए किसे दोषी ठहराया जाए। ट्रस्ट को सशक्त करने, हाई कोर्ट के आदेशों का पालन करने और भ्रष्टाचार की जांच को पुनर्जन्म देने की जरूरत है। स्थानीय प्रशासन को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि बारिश के मौसम में बाढ़ जैसे हालात से बचने के लिए तत्काल कदम उठाए जाएं। निष्कर्ष शहडोल का मोहन राम मंदिर आज भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन का शिकार है। दीवाल का ढहना केवल एक भौतिक क्षति नहीं, बल्कि यह उस विश्वास का टूटना है, जो श्रद्धालु इस पवित्र स्थल से जोड़ते हैं। यह समय है कि स्थानीय प्रशासन, मंदिर ट्रस्ट और सरकार इस मामले को गंभीरता से लें और मंदिर की गरिमा को पुनर्स्थापित करें। जब तक मलबे में दबे सवालों के जवाब नहीं मिलते, तब तक यह भ्रष्टाचार की कहानी अधूरी ही रहेगी।