तो अब निराकृत हो सकता है किरण टॉकीज जल स्रोत बावली का मामला..? ( त्रिलोकीनाथ )
विगत दिनों शहडोल में जल जागरुकता को लेकर जंग छिड़ी हुई है मामला किरण टॉकीज के पास उसे प्राचीन बावली का है जिसे छपरा परिवार से संबंधित लोगों ने भांट दिया है और उससे उसे भ्रम को बढ़ावा मिला है जिसमें शहडोल जिला भाजपा अध्यक्ष का संरक्षण और उसकी मिली भगत होने के आरोप हैं यह अच्छा है की स्वयं विधायक के नेतृत्व में जिला भाजपा अध्यक्ष अमिताभ चोपड़ा और उनके सभी सहयोगियों ने कलेक्टर को ज्ञापन सौंप कर अपना पक्ष रखा है
ज्ञापन में कहा गया है विगत दिनों में समाचार पत्रों एवं सोशल मीडिया के द्वारा जिला भाजपा अध्यक्ष श्रीमती अमिता चपरा की
छवि एक जमीन के मामले से जोड़कर धूमिल करने का प्रयास किया जा रहा है.. जबकि वस्तुस्थिति यह है की जिलाध्यक्ष श्रीमती अमिता चपरा जी का उस मामले से कोई लेना-देना नहीं है. उक्त मामले में उनके द्वारा आजतक कभी भी किसी को कोई भी तरह का राजनैतिक दबाव नहीं डाला गया है. केवल व्यक्तिगत लाभ एवं स्वार्थ के कारण कुछ लोगों के द्वारा साजिश के तहत लगातार अभद्र नारेबाजी,मुर्दाबाद के नारे कर सत्ताधारी पार्टी की मुखिया होने के नाते उनको एवं पार्टी को टारगेट किया जा रहा है.
अस्तु अनुरोध है की जिला भाजपा अध्यक्ष श्रीमती अमिता चपरा के खिलाफ झूठी, निराधार
शिकायत करने वालों के खिलाफ उपयुक्त कार्यवाही करने का कष्ट किया जाए ताकि सामाजिक जीवन में शुचिता भंग करने वालों के गैर-इरादतन हौसले न बढे एवं इस प्रकार की हरकत की पुनरावृत्ति ना हो सके..
साथ ही कथित शिकायत पत्र के आधार पर कलेक्टर से निवेदन किया की ग्राम भुईबाँध की भूमि ख. नं. 72
की पूर्ण जांच एवं सीमांकन किया जाए ताकि वैध एवं अवैध कब्जाधारियों की स्थिति स्पष्ट हो सके और
भाजपा की छवि कराब करने वाले दोषी व्यक्तियों के खिलाफ कार्यवाही की जाए.
यह अलग बात है कि आंदोलनकारी के द्वारा जिन प्रपत्रों की प्रस्तुति की गई है उसमें अपर कमिश्नर के उसे आदेश का भी जिक्र है जिसमें संबंधित भूमि खसरा नंबर 72 के मामले में स्पष्ट आदेश पारित किया गया है जिसमें कहा गया है
प्रकरण का संक्षिप्त विवरण बताते हुए अपर कमिश्नर केपी रही ने कहा इस प्रकार है कि ग्राम भुईया की आराजी खसरा नंबर 72 के जुज
भाग 0.141/2 एकड़ भूमि का भूमिस्वामी श्री मती शकुन्तला चारा को नजूल अधिकारी के द्वारा राजस्व
प्रकरण क्रमांक 02/अ-1/93-94 पारित आदेश दिनांक 4.7.1997 में घोषित किया गया । अपर कलेक्टर
शहडोल ने नजूल अधिकारी के आदेश को त्रुटिपूर्ण पाते हुए प्रकरण स्वमेव निगरानी में दर्ज कर श्री मती
शकुन्तला चपरा को कारण बताओ नोटिस जारी किया । प्रकरण में श्री मती शकुन्तला चपरा की मृत्यु पश्चात
उसके वारिसानों को पस्कार धनाया जाकर प्रकरण पर सुनवाई विचाराधीन था। श्री मती शकुन्तला चपरा के
द्वारा स्वमेव निगरानी में दर्ज प्रकरण के विरूद्ध निगरानी कमिश्नर रीवा के समक्ष प्रस्तुत किया गया, जो
दिनांक 6.6.2001 को निरस्त कर दिया गया। तत्पश्चात अपर कलेक्टर शहडोल के द्वारा प्रकरण में गुण
दोष के आधार पर सुनवाई किया जाकर नजूल अधिकारी के द्वारा पारित आदेश दिनांक 4.7.1997 निम्त
कर दिया गया। जिससे व्यथित होकर यह निगरानी प्रस्तुत की गई है।
3. प्रकरण के अवलोकन से स्पष्ट है कि ग्राम भुईबांध की आराजी खसरा नंबर 72 नजूल भूमि है तथा
नजूल भूमि का व्यवस्थापन या भूमिस्वामी घोषित करने का अधिकार राज्य शासन को है, नजूल अधिकारी
को नहीं है । नजूल अधिकारी शहडोल ने म. प्र. भू- राजस्व संहिता 1959 की धारा 57(2) के अंतर्गत
कार्यवाही आरंभ कर गैर हकदार मानकर भूमिस्वामी घोषित किया गया है। गैर हकदार वही कातकार माने
गये हैं जो रिया राज्य कानून माल 1935 की धारा 57(4) की पूर्ति करता हो अर्थात दिनांक 2.10.1959 के
पूर्व वर्ष 1953-54 में काबिज हो, लगान देता हो । नजूल अधिकारी के प्रकरण में ऐसा कोई प्रमाण प्रस्तुत
नहीं किया गया था, जिससे प्रमाणित हो सके कि श्री मती शकुन्तला चपरा प्रश्नाधीन भूमि का गैर हकदार हो।
मती शकुन्तला चपरा के द्वारा भी गैर हकदार होने का कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया गया। यह उल्लेख
किया गया कि तात्कालीन इलाकेदार के द्वारा उसे वर्ष 1932 में हुकुमनामा दे गये थे किन्तु वर्ष 1932 से
लेकर वर्ष 1959 तक किसी भी अभिलेख में इस तरह की प्रविष्टि दर्ज होने का उल्लेख नहीं है। यदि
हुकूमनामा दिया गया था, तो वर्ष 1997 के पूर्व क्यों नहीं प्रस्तुत किया गया तथा कार्यवाही क्यों नहीं कराई
गई तथा नजूल भूमि घोषित होने के पश्चात आवेदक पक्ष के द्वारा उक्त आदेश के विरूद्ध भी आवेदकगणों
ने सक्षम न्यायालय में कोई अपील / निगरानी प्रस्तुत नहीं की गई. प्रकरण के अवलोकन से यह भी स्पष्ट है कि नजूल भूमि पर नजूल अधिकारी को धारा 57(2) के
अंतर्गत शहडोल जिले में विचार करने पर प्रतिबंधित किया गया था। उक्त अधिकार अनुविभागीय अधिकारी
को दिया गया था। निश्चित रूप से नजूल अधिकारी शहडोल ने आवेदकगणों को अनुचित लाभ पहुंचाने के
उद्देश्य से म. प्र. शासन की महत्वपूर्ण भूमि को आवेदकगणों के नाम भूमिस्यामित्य में दर्ज करने का आदेश
देने में वैधानिक त्रुटि की है। अपर कलेक्टर शहडोल ने नजूल अधिकारी का आदेश दिनांक 4.7.1997
निरस्त कर प्रकरण प्रत्यावर्तित किया है किन्तु आवेदकगणों ने जब कोई प्रमाण ही गैर हकदार के संबंध में
प्रस्तुत नहीं किया है. ऐसी स्थिति में प्रकरण प्रत्यावर्तित किया जाना भी न्यायोचित नहीं था।
3 अतः आवेदकगणां द्वारा प्रस्तुत निगरानी अमान्य करते हुए अपर कलेक्टर शहडोल का आदेश
दिनांक 4.10.2007 आंशिक संशोधन कर प्रश्नाधीन भूमि म. प्र. शासन, नजूल दर्ज करने का आदेश दिया
जाता है। पक्षकार सूचित हों। अधीनस्थ न्यायालय का मूल अभिलेख आदेश की प्रति के साथ वापस भेजा
जाये। बाद कार्यवाही प्रकरण नस्ती होकर अभिलेख कोष में संचित हो।
ऐसी स्थिति में प्रशासन को इस पर त्वरित कार्यवाही करने की आवश्यकता इसलिए भी है क्योंकि इस भ्रामक वातावरण से यह गलत संदेश जा रहा है कि सत्ताधारी दल भाजपा के लोग ही जल संरक्षण के जल स्रोत की विरासत में प्राप्त बावली को भूमिया गिरी के चलते नष्ट कर रहे हैं जो पूरी तरह से पारदर्शी है इसमें कोई शक नहीं है अब समस्या यह है कि प्रशासन इस मामले को क्या तब भी लटकता रहेगा .जैसे कि पूर्व के कई सालों के आदेशों से स्पष्ट प्रतीत होता है कि प्रशासन ने निराकरण के लिए कोई ठोस पहल नहीं किया था. और यह कोई नई बात नहीं है विभिन्न न्यायालय के आदेश यहां तक क्या हाई कोर्ट का आदेश पिछले 12 वर्ष से मोहन राम मंदिर ट्रस्ट के मामले में दम तोड़ रहा है और भूमाफिया गिरी जमकर हो रही है लेकिन किरण टॉकीज जल स्रोत मामले में चपरा परिवार की बहू जैसे ही जिलाध्यक्ष के पद पर आईं उनकी अनुपस्थिति में इस जल स्रोत को पूरी ताकत के साथ इस तरह से नष्ट कर उसे पर कब्जा करने का काम किया गया जैसे कि स्वयं भाजपा जिला अध्यक्ष श्रीमती चपरा के संरक्षण में यह सब हो रहा है यह अच्छे संकेत हैं कि भाजपा अध्यक्ष ने अपने पूरी पार्टी का पक्ष रखते हुए स्वयं कलेक्टर को इस पूरे मामले की पारदर्शी तरीके से जांच करने की बात कही है और दोषियों को दंडित करने की भी बात कही है. किंतु सवाल यह है कि पिछले 20 साल से भारतीय जनता पार्टी का ही शासन है इसके बावजूद भी यह जल स्रोत अपर कमिश्नर के आदेश के बाद युद्ध भी अंततः अस्तित्व नष्ट होने की कगार पर कैसे आकर खड़ा हो गया...? और इस बात की तारीफ करनी ही चाहिए कि आंदोलनकारी ने इस जल जागरुकता के लिए जो लग जागी है वह पुर शहडोल की जल संरक्षण के दिशा में एक प्रभावी पहल कही जाएगी क्योंकि यह बात तो तय है कि आप नए जल स्रोत तैयार करने की औकात में भी नहीं है। क्योंकि भू माफिया पूरी जमीनों को कब्जा कर लाभ कमा रहा है और उसका बंदर बांट कर रहा है । जैसा कि ग्राम जमुआ गोरतरा में प्रतिष्ठित रहे अधिवक्ता सिंन्हा परिवार के डॉक्टर सिन्हा के ऊपर भी सरकारी जमीन को कब्जा करके हेरा फेरी करते हुए लोगों को भेज देने की बात सामने आई है जैसा कि प्रतिष्ठित डॉक्टर मस्ता के नाम पर मिनांशु द्वारा भू माफिया गिरी करते हुए साइन मंदिर के सामने व्यवस्थापन की जमीन किसी जैन को हेरा फेरी करते हुए बेच दी और उसे पूरी जमीन पर अब डबल स्टोरी बड़ा भवन तैयार कर आम भोले भाले लोगों को ठगी का कारण बनाया जाएगा। जैसा कि राजेंद्र टॉकीज के पीछे स्टेट बैंक आफ इंडिया के लिए बना रही किसी बिल्डिंग में मिनांशु द्वारा हेरा फेरी करते हुए नगर पालिका में पारित नक्शे के खिलाफ अवैध निर्माण कर किसी अन्य की जमीन पर भूमाफिया गिरी की जा रही है बल्कि सार्वजनिक सड़क की भूमि पर भी कब्जा कर अवैध निर्माण किया जा रहा है किंतु संबंधित प्रशासन इस पर कभी भी तत्काल कार्रवाई कर इन पर रोक नहीं लगाया जिससे भू माफियाओं का मनोबल बढ़ता रहा है इसमें प्रतिष्ठित परिवारों की प्रतिष्ठित दलों पर स्थापित व्यक्तियों के छवि को इसलिए दया का पहुंचता है क्योंकि उन्होंने इस पर भ्रामक वातावरण बनाए रखना कि श्रृंखला को तोड़ने का काम नहीं किया श्रीमतीअमिता चपरा ने और जिला भाजपा दल तथा विधायक जैसीनगर क्षेत्र श्रीमती मनीषा सिंह ने कलेक्टर को सामूहिक ज्ञापन सौंप कर जो पारदर्शी कार्यवाही की अपेक्षा प्रशासन से की है ।
निश्चित रूप से प्रशासन इस पर तत्काल कार्यवाही कर न सिर्फ किरण टॉकीज के पास के विरासत वाले जल बावली को संरक्षित करेगा बल्कि अपने ही आदेशों का पालन करेगा जो लंबे समय से लंबित रहा और इसी प्रकार अन्य सामने आए भूमाफियाओं के कारनामों पर प्रभावशाली कार्यवाही करेगी। ताकि भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं को बल ना मिल सके यह सिर्फ इसलिए हो पाया है क्योंकि जागरूक नागरिक दल आंदोलन कर सार्वजनिक तौर पर इस मामले को लाने का काम किया इसमें कोई शक नहीं....। अब "जल स्रोत को नष्ट होने के मामले की फुटबॉल" प्रशासन के पाले में है प्रशासन के निष्पक्षता निश्चित तौर पर शहडोल के सकारात्मक विकास के लिए मील का पत्थर साबित होगी, अगर वह ऐसा कर पाती है.तो..? क्योंकि अब तो वर्तमान प्रशासन में निष्पक्ष प्रशासनिक अधिकारी को इस बात का बल अवश्य मिलेगा कि स्वयं सत्ताधारी दल ने इस बात की मांग प्रशासन से की है। तो परिणाम जल्द ही हमें देखने को मिलेंगे ,इससे शहडोल की जल संरक्षण का संदेश भी स्पष्ट रूप से जाएगा कि कोई भी जल स्रोतों को यदि नष्ट करता है तो उसके परिणाम अच्छे नहीं होंगे।