Top News

कर्मयोगी पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। यूनाइटेड कॉन्शियसनेस के सहयोग से आयोजित हुआ कार्यशाला।

पंडित शम्भू नाथ शुक्ला विश्वविद्यालय शहडोल में आज "कर्मयोगी बने " विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन कियागया।

शिक्षाविदों को कर्मयोग की राह दिखाएगा विशेष सेमिनार।

रिपब्लिक न्यूज़।।                                                                 

शहडोल मुख्यालय जिला के पंडित शंभूनाथ शुक्ल विश्वविद्यालय शहडोल में आज "Be a Karmyogi" विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। यूनाइटेड कॉन्शियसनेस के सहयोग से आयोजित इस कार्यशाला का उद्देश्य शिक्षाविदों को कर्मयोग के गहरे दर्शन से जोड़ना और उनके अकादमिक व प्रशासनिक दृष्टिकोण में इसे समाहित करना था।कार्यशाला की शुरुआत दीप प्रज्वलन और सरस्वती वंदना से हुई, जिसके बाद कुल सचिव प्रो आशीष तिवारी ने विषय प्रस्तावना रखी। और कर्मयोग पर अपने विचार साझा करते हुए कहा, "निस्वार्थ कर्म ही व्यक्ति को सच्ची सफलता की ओर ले जाता है। 

शिक्षाविदों के लिए यह दर्शन न केवल व्यक्तिगत उन्नति का मार्ग है, बल्कि संपूर्ण शैक्षणिक व्यवस्था को सशक्त बनाने का आधार भी है।

कार्य शाला के दौरान सार्थक संवाद और समाधान में कार्यशाला के दौरान शिक्षकों और छात्रों ने कर्मयोग को शिक्षण पद्धति और प्रशासन में शामिल करने के तरीकों पर चर्चा की। विभिन्न समूहों द्वारा प्रस्तुत विचारों में शैक्षणिक नेतृत्व में नैतिकता, सेवा भावना और समर्पण जैसे विषयों पर जोर दिया गया। इसके लिए डॉ मनीषा शुक्ला सहायक प्राध्यापक बायोटेक द्वारा पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से प्रस्तुति करन किया गया। 

कुलगुरु प्रो रामशंकर ने अपने विचारावेश उद्वोधन में कर्म योगी की विशद व्याख्या की और कहा "Be a Karmyogi" कार्यशाला ने शिक्षाविदों को कर्मयोग के आदर्शों से जोड़ा और एक ऐसा मंच तैयार किया, जहां वे न केवल अपने कर्तव्यों को बेहतर ढंग से समझ सकें, बल्कि अपने संस्थानों को भी एक सशक्त और नैतिक मार्गदर्शन प्रदान कर सकें।शिक्षा केवल पुस्तकों तक सीमित नहीं, बल्कि यह कर्तव्यनिष्ठा, निस्वार्थ सेवा और नैतिक मूल्यों की भी पाठशाला है।

इसी विचार को साकार करने के लिए पंडित शंभूनाथ शुक्ल विश्वविद्यालय, शहडोल में एक दिवसीय "Be a Karmyogi" कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य शिक्षकों और छात्रों को कर्मयोग के सिद्धांतों से परिचित कराना और इसे उनके जीवन और अकादमिक प्रशासन में समाहित करना है। "यदि शिक्षाविद अपने कार्य को सेवा और समर्पण भाव से करेंगे, तो शिक्षा जगत में नैतिकता और गुणवत्ता का स्तर और ऊंचा होगा।"Be a Karmyogi" कार्यशाला ने यह स्पष्ट कर दिया कि शिक्षा केवल किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं हो सकती। यदि शिक्षक, प्रशासक और छात्र कर्मयोग को अपनाते हैं, तो यह न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन में सकारात्मक बदलाव लाएगा, बल्कि पूरे शिक्षा तंत्र को भी एक नई दिशा प्रदान करेगा।

सेंटरल लाइब्रेरी में आयोजित मंथन सत्र में कर्मयोग को संस्थानों में व्यावहारिक रूप से लागू करने की संभावनाओं पर विचार किया गया। इसके बाद प्रतिभागियों ने समूह प्रस्तुतियां दीं, जिसमें शिक्षकों और छात्रों ने मिलकर कर्मयोग के व्यावहारिक पहलुओं को साझा किया। जिसमें शिक्षकों और छात्रों ने कर्मयोग से जुड़े व्यवहारिक समाधानों पर चर्चा की। प्रत्येक समूह ने अपने विचार प्रस्तुत किए, जिनमें शैक्षिक संस्थानों में कर्मयोग के प्रभावी कार्यान्वयन पर जोर दिया गया।

कार्यशाला के समापन सत्र में प्रो. प्रमोद कुमार पांडेय ने सारांश उद्बोधन दिया और शिक्षाविदों को कर्मयोगी बनने के लिए प्रेरित किया। और कहा कर्मयोग के मूल सिद्धांतों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, शिक्षा केवल ज्ञान का संकलन नहीं है, बल्कि यह एक प्रक्रिया है, जो व्यक्ति को अपने कर्तव्यों के प्रति समर्पित बनाती है। यदि शिक्षक और प्रशासक इसे आत्मसात कर लें, तो समाज और राष्ट्र दोनों का उत्थान संभव है।

इस कार्यशाला का कुशल सञ्चालन डॉ बृजेन्द्र पांडेय सहायक प्राध्यापक संस्कृत ने किया इस कार्य शाला में विश्वविद्यालय के कुलपति, कुल सचिव, डाक्टर अनिल उपाध्याय एवं विश्वविद्यालय के 50 शिक्षक (प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर, सहायक प्रोफेसर) और 50 छात्र -छात्राओं ने इस कार्यशाला में भाग लिया आभार प्रदर्शन के साथ यह कार्यशाला संपन्न हुई।

Previous Post Next Post